hallabolnewsliveमितेश कुमार सिन्हा संपादक कि कलम से :किसानों के मसीहा स्वर्गीय चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत कि 89वीं जयंती समारोह का आयोजन लखनऊ के इकोगार्डन में आयोजित किया गया जिसमें अलग अलग जनपद व अलग अलग राज्यों से जयंती समारोह शामिल होने आये किसान नेताओं के अम्बार लग गए। वहीं आपको बताते कि आखिर कौन थे चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत जो किसानों दिल पर राज करते थे देश के सबसे बड़े किसान नेताओं में शुमार चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत का जन्म उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले स्थित सिसौली गांव में 6 अक्टूबर 1935 को हुआ था.

6 अक्टूबर 1935 को सिसौली में जन्मे थे बाबा टिकैत
देश के सबसे बड़े किसान नेताओं में शुमार चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत का जन्म उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले स्थित सिसौली गांव में 6 अक्टूबर 1935 को हुआ था. किसान परिवार से संबंध रखने वाले बाबा सिंह टिकैत खांटी किसान थे. उनके पिता का निधन 8 साल की उम्र में ही हो गया था और यहीं से उनकी सामाजिक जिम्मेदारियों का दौर भी शुरू हो गया. असल में पिता की माैत के बाद वे बालियान खाप के चौधरी बने. बाबा टिकैत का निधन 15 मई 2011 को हुआ था.

चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत वास्तव में किसानों के बहुत बड़े नेता थे। उनके जीवन का उद्देश्य किसानों को इतना जागरूक करना था कि किसान की आवाज भी हुक्मरानों तक पहुंच सके। किसानों को वाजिब हक दिलाने के लिए तमाम बड़े राजनेताओं से समय-समय पर टकराव मोल लिया।

टिकैत ने अपने किसान आंदोलन को कभी भी किसी राजनीतिक दल से जोड़ने नहीं दिया, क्योंकि वे जानते थे कि आंदोलन को किसी राजनीतिक दल से जोड़ने से आंदोलन टूटेगा या उसमें हिंसा होगी। देश ही नहीं पूरी दुनिया में मेरठ और भाकियू एक साथ सुर्खियों में रहे थे। किसानों की दुर्दशा को देख कर टिकैत इतना व्यथित हुए थे कि उन्होंने 27 जनवरी 1988 को हजारों किसानों के साथ मेरठ में डेरा डाल दिया। यह आंदोलन 23 फरवरी 1988 तक चला। वो 27 दिन शायद ही कोई मेरठवासी भूल पाया हो।

आंदोलन की आंच लखनऊ और दिल्ली के हुक्मरानों तक पहुंची थी। कड़ाके की ठंड के कारण सात किसानों की मौत हो गई थी। इस आंदोलन से टिकैत किसानों के मसीहा बने और देश दुनिया में नाम बुलंद हुआ। मेरठ के लोगों के जहन में आज भी आंदोलन की याद ताजा है। इसके बाद टिकैत ने 25 अक्टूबर 1988 को नई दिल्ली स्थित वोट क्लब पर आंदोलन का बिगुल फूंका। हालांकि उनके नाम किसानों के हक के लिए अनगिनत आंदोलनों की किताब भरी है। लेकिन मेरठ और वोट क्लब के दो आंदोलनों से टिकैत की ख्याति दुनिया तक हुई।

कंधे पर चादर और हुक्का ताउम्र रहीं पहचान
बालियान खाप के मुखिया चौहल सिंह टिकैत और माता मुख्त्यारी देवी के यहां छह अक्तूबर 1935 को जन्मे महेंद्र सिंह का जन्म सिसौली में हुआ था। पिता के निधन के बाद बचपन में बालियान खाप की जिम्मेदारी संभालनी पड़ी। उन्होंने 1950 से 2010 तक सर्वखाप की कई महापंचायतों में सामाजिक कुरीतियों नशाखोरी, भ्रूण हत्या, मृत्यु भोज और दहेज प्रथा पर नियंत्रण को अभियान चलाया। कंधे पर चादर, पैरों में हवाई चप्पल और सिर पर टोपी ने उन्हें खास पहचान दी। हुक्का जीवनभर उनका साथी रहा।
किसान मसीहा के महत्वपूर्ण आंदोलन
-एक मार्च 1987 को करमूखेड़ी बिजलीघर पर हुंकार
-11 अगस्त 1987 को तत्कालीन यूपी के सीएम वीर बहादुर सिसौली आए
-27 जनवरी 1988 से मेरठ में 27 दिन का विशाल धरना
– 6 मार्च 1988 से रजबपुर मुरादाबाद में 110 दिवसीय धरना
– 25 अक्तूबर 1988 से 31 अक्तूबर तक वोट क्लब दिल्ली में धरना प्रदर्शन
-3 अगस्त 1989 को नईमा कांड में भोपा नहर पर 39 दिवसीय धरना
महेंद्र सिंह टिकैत: जिनके सामने सरकारों ने कई बार टेके घुटने, जानें कैसे बने थे किसानों के मसीहा:नए कृषि कानूनों को लेकर देश भर के किसान पिछले दो माह से राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर डटे हुए हैं। गणतंत्र दिवस पर हुई हिंसा के बाद किसान आंदोलन मंद पड़ता देख किसान नेता राकेश टिकैत रो पड़े, जिसके बाद एक बार फिर किसानों की भारी भीड़ राजधानी में जुटने लगी है। ऐसे में एक बार फिर लोगों को बाबा टिकैत की याद आ गई। आइए बताते हैं कौन थे बाबा टिकैत, जिनके आंदोलन से हिल गया था दिल्ली दरबार…
राजधानी में दो माह से जारी किसान आंदोलन को देखकर लोगों को तीन दशक पुराना एक किसान आंदोलन याद आ रहा है। आज से 32 साल पहले भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक बाबा टिकैत यानी चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने दिल्ली को ठप कर दिया था। उस वक्त केंद्र में राजीव गांधी की सरकार थी, उन्हें किसानों के आगे झुकना ही पड़ा था।
पिछले दो माह से कड़ाके की सर्दी में सड़कों पर डटे किसानों को सत्ता से टकराने का जज्बा और प्रेरणा बाबा टिकैत से ही मिली। किसानों को अपने हक के लिए लड़ना सिखाने वाले चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के एक इशारे पर लाखों किसान जमा हो जाते थे। कहा तो यहां तक जाता था कि किसानों की मांगें पूरी कराने के लिए वह सरकारों के पास नहीं जाते थे, बल्कि उनका व्यक्तित्व इतना प्रभावी था कि सरकारें उनके दरवाजे पर आती थीं।
इस तरह चर्चा में पूरी दुनिया में छा गए थे बाबा टिकैत:चौधरी टिकैत के जीवन का सफर कांटों भरा था। 1935 में मुजफ्फरनगर के सिसौली गांव में जन्मे चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत का पूरा जीवन ग्रामीणों को संगठित करने में बीता। भारतीय किसान यूनियन के गठन के साथ ही 1986 से उनका लगातार प्रयास रहा कि यह अराजनीतिक संगठन बना रहे। 27 जनवरी, 1987 को करमूखेड़ा बिजलीघर से बिजली के स्थानीय मुद्दे पर चला आंदोलन किसानों की संगठन शक्ति के नाते पूरे देश में चर्चा में आ गया, लेकिन मेरठ की कमिश्नरी 24 दिनों के घेराव ने चौधरी साहब को वैश्विक क्षितिज पर ला खड़ा किया। इस आंदोलन ने पूरी दुनिया में सुर्खियां बटोरीं।
सात दिन में मनवाई थीं अपनी सभी मांगें:बाबा टिकैत के नेतृत्व में कई आंदोलन हुए लेकिन एक आंदोलन ऐसा भी था, जिसे देख मौजूदा केंद्र सरकार तक कांप गई थी। 1988 के दौर की बात है नई दिल्ली वोट क्लब में 25 अक्तूबर, 1988 को बड़ी किसान पंचायत हुई। इस पंचायत में 14 राज्यों के किसान आए थे। करीब पांच लाख किसानों ने विजय चौक से लेकर इंडिया गेट तक कब्जा कर लिया था।
सात दिनों तक चले इस किसान आंदोलन का इतना व्यापक प्रभाव था कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार दबाव में आ गई थी। आखिरकार तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को पहल करनी पड़ी तब जाकर किसानों ने अपना धरना खत्म किया था। इस आंदोलन से चौधरी टिकैत ने वह कद हासिल कर लिया कि प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री भी उनके आगे झुकने लगे थे।
प्रधानमंत्री से पूछा ऐसा सवाल, सन्न रहे गए:वर्ष 1980 में हुए हर्षद मेहता कांड को लेकर राजनीतिक गलियारे में तूफान था, इसी बीच किसानों की समस्या को लेकर महेंद्र सिंह टिकैत उस वक्त के प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव से मिले, तो पीएम से सीधे पूछ लिया कि क्या आपने एक करोड़ रुपया लिया था? कोई प्रधानमंत्री से ऐसा सवाल सीधे कैसे पूछ सकता है, लेकिन उन्होंने बिना किसी हिचक के बड़ी ही बेबाकी से सवाल पूछ लिया था।
उन्होंने हर्षद मेहता का नाम लेकर प्रधानमंत्री से यह भी पूछ लिया कि वह आदमी तो पांच हजार करोड़ का घपला करके बैठा है, कई मंत्री घपला किए बैठे हैं और सरकार उनसे वसूली नहीं कर पा रही है, लेकिन किसानों को 200 रुपये की वसूली के लिए जेल क्यों भेजा जा रहा है?
जब मुख्यमंत्री ने बाबा टिकैत के गांव पहुंच की थी वार्ता…
बाबा टिकैत के नेतृत्व में वर्ष 1986 में भी बिजली की बढ़ी दरों को लेकर किसान लामबंद हुए थे। महेंद्र सिंह टिकैत को भारतीय किसान यूनियन का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया। आंदोलन का ऐसा असर था कि उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह को सिसौली (टिकैत के गांव) पहुंचकर किसानों से वार्ता करनी पड़ी। 11 अगस्त 1987 को सिसौली में एक महा पंचायत की गई, जिसमें बिजली दरों के अलावा फसलों के उचित मूल्य, गन्ने के बकाया भुगतान के साथ सामाजिक बुराइयों जैसे दहेज प्रथा, मृत्यु भोज, दिखावा, नशाबंदी, भ्रूण हत्या आदि कुरीतियों के विरुद्ध भी जन आंदोलन छेड़ने का निर्णय लिया गया।ऐसे ही रोचक जानकारी के लिए देखते रहेंhallabolnewslive
